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कैद से बाहर

"लगता तो यही है। "कपाली मुंडी घुमाता हुआ बोला।

और मुझे तो ये कोई तहखाना लगता है जिस प्रकार इसकी बनावट है अंदर फर्श के नाम पर उबड़ खाबड़ पत्थर ही पत्थर है और दीवारें भी ऐसे लग रही है जैसे पत्थर को काटकर बनाया गया है। हम किसी तहखाने मे कैद है।

"जब मुसीबत सिर पर होती है तो कपाली का दिमाग घोड़े की तरह दौड़ने लगता है। शिखर ने कहा ,"लेकिन ये तो बताओ ना हम यहां से कैसे निकलेंगे?"

"मुझे सोचने दो मै क्या कर सकता हूं क्योंकि हम लोग पांच सौ साल पीछे भूतकाल मे हैं.. हमारे कपड़े, रहन सहन, बातचीत का ढंग सब कुछ अलग है इन लोगों से, सब से पहले हमे यहां से निकलने का कोई आइडिया बनाना होगा‌"

क्या हम किसी को आवाज़ देकर बुलाये, सोहन ने कहा

नहीं,.. हो सकता है किसी को पता भी नहीं हो के हम यहाँ हैं, मतलब चश्मा हमको लाया है भविष्य से.. शिखर ने कहा,

काफी देर तक सोचने के बाद कपाली एकदम बोला, "हां मुझे कुछ कुछ लग रहा है कि हो सकता है ये चश्मा ही हमें यहां लाया है और ये अब मेरे वश मे है सो हो सकता है ये हमे वापस पोहचा दे या बाहर निकाल दे इस तहखाने से। एक बार ट्राई करने मे क्या जाता है..

सभी ने एक साथ कहा, "हो सकता है ।

तान्या ने जल्दी से कहा भगवान करे ऐसा ही हो।"

तभी कपाली चश्मे के पास गया और बोला,"हे जादुई चश्मे ! हमे वापस हमारे समय काल में पोहचा दे..

सब गौर से देखते रहे लेकिन कुछ नहीं हुआ.. कपाली बार बार बोलता रहा, पर चश्मे में कोई हलचल नहीं थीं.. मुझे नहीं लगता हम वापस ऐसे ही जा सकते है तान्या ने डरी हुयी आवाज़ में कहा,..

कपाली बैठ गया था.. वो एक दम से उठा और उसने चश्मे से कहा हमको इस तहखाने से बाहर जाना है । तुम हमें बाहर निकाल दो यहां से।"

उनको ऐसा लगा जैसे चश्मे में तेज़ लाइट चमकी और उनको ऐसा लगा जैसे की वो चश्मे में खींचे चलें जा रहें हो.. ये इतनी जल्दी हुआ की सबने अपनी ऑंखें बंद कर लीं थीं..

और जैसे चमत्कार हो गया कपाली , तान्या और शिखर , सोहन ने अपने आप को एक बाजार मे खड़े पाया। बाजार बहुत साफ था, दोनों तरफ दुकाने थीं दुकानों के आगे आगे हाथों से बुनी हुयी बोरी लगी हुयी थीं, थोड़ा आगे एक सपेरा सांप का खेल दिखा रहा था सांप उसकी बीन की आवाज़ में झूम रहें थे और वो गोल गोल चक्कर लगा रहा था साँपो के चारों तरफ.. बड़े छोटे सभी लोग ताली बजा बजा कर उस सपेरे का उत्साह बढ़ा रहे थे।

कपाली और उसके तीनों दोस्त जब वहां एकदम से प्रगट हुए तो वहां उपस्थित सभी लोग उन्हें ऐसे देखने लगे जैसे कोई बहुत बड़ा अजूबा देख लिया हो। एक औरत तो चीखने ही लगी थीं.. और लोग सपेरे को छोड़ कर उनको देखने लगे थे, उनके हिसाब से उनके कपडे बहुत अजीब थे..

और तान्या ने जींस पहनी हुयी थी जो की घुटनों पर से खुली हुयी थी.. जिसकी वजह से लोग वहाँ इशारा कर रहें थे और एक दुसरे को बता रहे थे..

कुछ लोग हिम्मत कर के उनकी तरफ बढे.. कपाली थोड़ी राजस्थानी भाषा जानता था वो उसी मे बोला, "थेह या न नू ना देखो ये पागल है आपना कपड़ा सारा का सारा फाड़ लिया या ने।" और ये कह कर कपाली ने तान्या का हाथ पकड़ा और एक पतली सी गली में बढ़ने लगा, शिखर और सोहन भी उसके पीछे चलने लगे .. वो आगे बढे और लगी के आखिर में एक खाली मकान मे भाग कर घुस गये सभी मकान एक दुसरे से बहुत दूर दूर पर बने हुवे थे।..

वहाँ पोहच कर उन्होंने देखा..शायद उस मकान मे कोई रहता नही था जगह जगह से टूटा फूटा पड़ा था और यह एक नीची छत का मकान था और मकान मे बहुत ही ज्यादा धूल जमी थी जिसे देखकर लगता था काफी समय से यहाँ कोई नहीं आया था, उसके खिड़कियों पर बोरी के पर्दे लटके हुवे थे..

अन्दर पोहच कर सबने राहत की सांस लीं और दरवाज़ा बंद कर लिया.. कपाली बोला, "परफेक्ट ,ये मकान अपने लिए सही है लगता है ये बरसों से बंद पड़ा है कोई नही रहता यहां। अब मेरी बात ध्यान से सुनो तुम तीनों मे से शिखर ही थोडी बहुत राजस्थानी भाषा बोल पाता है सो तुम दोनों तान्या और सोहन जितना हो सके चुप रहना और अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल नहीं करना। अब हमे इनके जैसी वेश भूषा पहननी पड़ेगी। ताकि हम इन लोगों मे सम्मिलित हो सके। नही तो इनको पता चल जाएगा कि हम इस काल के नही है "

सभी इस बात से सहमत हो गये सबने बाहर अभी देख ही लिया था लोग उनको कैसे देख रहें थे ।

वो लोग बैठ गये, शाम का समय था, सोहन ने खिड़की से थोड़ा सा खोल कर देखा बाहर कोई नहीं दिख रहा था, बस कभी कभी घोड़ो की आवाज़ आने लगती थी जिससे वो लोग डर कर बाहर देखना शुरू कर देते थे, के कोई यहीं तो नहीं आरहा है उनको भूक लगी हुयी थी लेकिन किसी ने भी एक दुसरे से कुछ नहीं बोला, रात से पहले वो निकल नहीं सकते थे

कपाली और शिखर रात के समय उस मकान से बाहर निकाले और आसपास का जायजा लेने लगे.. बहुत घुप अंधेरा था। आसमान में चाँद नहीं निकला था, हाथ को हाथ सुझाई नही दे रहा था। आस पास कोई मकान नहीं था जिसमे दिया भी जल रहा हो..

थोड़ा आगे जाने पे उन्होंने देखा उस मकान से थोड़ी सी दूर एक आलीशान मकान था जिसमे बहुत सारे दिए जल रहें थे, शायद किसी सेठ का था वो, वो लोग बिना आवाज़ कए उस मकान की तरफ बढ़ गये..

पास में जाकर उन्होंने दिवार से टेक लगा ली दिवार बहुत कम हाईट की थी कपाली और शिखर को झुकना पर रहा था वरना उनका सर दिख जाता अंदर.. दिवार पर कई दिए जल रहें थे और कई बस अब टिम टीमा रहें थे

अंदर उस मकान से आवाजें आ रही थी वो लोग बाहर आंगन में चारपाई बिछा कर लेते हुवे थे और आपस में बात कर रहें थे.. सेठानी आराम आराम से से बोल रही थी और सेठ की भी आवाजें आ रही थी। कपाली कान लगाकर उनकी बातें सुनने लगा ।

सेठानी सेठ जी से कह रही थी, "थेह जावता क्यूं नी दरबार मह। कोई काल पडगा के जो रानी सा के कारींदे (सैनिक)आ के दुकान सू इतता सारा सामान ले जया। यो तो अ़धेर गर्दी मचा राखो है।" तभी सेठ सेठानी को कहा , "ते धीरे बोल बावली दीवारा कै भी कान हो सै। जै रानी जी के सैनिकों ने सून ली तो। और यो ले पोटली आज कोई ब्याज का पीहसा दिया था वो दे गया तिजोरी में रख दीजो।"

कपाली और शिखर ने देखा, सेठानी बोली, "इब उठनो पड सी सवेरे ने रख दूंगी। "इतना कह कर उसने पोटली अपने सिरहाने के नीचे रख दी और जो दिया जल रहा था रोशनी के लिए उसे बुझा दिया।

थोड़ी देर तो वो लोग इए ही खड़े रहे, शिखर ने फुस फुसाकर कहा, यहाँ खाना मिल जायेगा,.. कपाली ने कहा, हो सकता है, लेकिन मुझे लगता है हमको कुछ और भी मिल जायेगा.. बस तुम बाहर रुकना कर इंतिजार करना.. कोई आये तब हल्की सीटी बजाना..

ठीक है.. शिखर ने कहा, इस समय दोनों के दिन बहुत तेजी से धड़क रहें थे, लेकिन यहाँ रहने के लिए कुछ तो करना ही था,

कपाली पहले तो बाहर खड़ा आहट लेता रहा कि कौन क्या कर रहा है जब उसे लगा कि सेठजी और सेठानी दोनों सो गये है उनके खर्राटों की आवाज आने लगी है तो वह आहट लेता हुआ एक दम दिवार पर चढ़ा और दूसरी तरफ बिना आवाज़ के कूद गया..

वो आराम से मकान मे प्रवेश कर गया था, शिखर को इसकी बिल्कुल उम्मीद नहीं थीं.. उसने झाँक कर देखा कपाली सेठ की चारपाई की तरफ बढ़ रहा था,

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